शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

Good Bye Prabhashji



हिंदी के वरिष्ट पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार प्रभाष जोशी के देहावसान की खबर दुखदाई है .... उनसे लगभग एक साल पहले जयपुर में मिलना हुआ था जब हरिश्चन्द्र माथुर लोक प्रशासन संसथान के सभागार में उनका भाषण था. वह और नामवर सिंह जी एक ही गाडी में दिल्ली से आये थे  और किसी शादी में जाने की हड़बड़ी में उसी शाम वापस लौटना चाहते थे. प्रख्यात  विद्वान कलानाथ शास्त्री जी मेरे साथ थे और ज़ाहिर था नामवर सिंह जी से अलग बैठ कर चर्चा करने का लोभ मन में था, हम लोग सभागार से निकल कर उस गेस्ट हाउस मैं चले आये जहाँ हिंदी के दोनों बेहतरीन वक्ताओं - प्रभाष जी और नामवर जी का अस्थाई डेरा था. मैंने तभी कला प्रयोजन के शायद दो नए अंक उसी दिन प्रकाशित किये थे, प्रभाषजी ने उत्सुकतापूर्वक  न सिर्फ  उन्हें  बेहद पैनी और तारीफ़ भरी निगाह से देखा बल्कि बातचीत को छोड़ कर वह चाय पीना भूल कर वहीं 'कला-प्रयोजन' के अंक पढने लगे, यह कहते हुए " भैया ! नामवरजी तुम्हारे अंक छोडेंगे नहीं, क्यों ये शायद उन्हीं के लिए तुम लाये भी हो पर मैं तो जितना संभव है, उन्हें यहीं पढ़ लेना चाहूँगा!"

मैं शर्मिंदा था, क्योंकि पत्रिकाओं की एक एक प्रति ही साथ थी!

उन्होंने तभी यह भी कह कर हमें और शर्मिंदा कर दिया : "क्या आप मेरे लेख अपनी पत्रिका मैं छाप पाएँगे, जो कला संस्कृति से सम्बंधित अक्सर नहीं होते!"

मैंने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया कि प्रकाशन मूलतः सांस्कृतिक प्रकृति का है और इतर विषय  खास तौर पर राजनीति और अर्थशास्त्र पर टिप्पणियां हम नहीं छापते....प्रभाष जी हँसे और  नामवर जी की तरफ शैतानी से देखते हुए कहने लगे "पर कला और साहित्य की राजनीति क्या कम राजनीति है ?"
खैर.... वह हमारी पहली या दूसरी मुलाकात थी, पर उनका लिखा मैं हमेशा बेहद ध्यान से पढ़ कर अक्सर उनकी विश्लेषण-क्षमता और तार्कितता के प्रति और प्रशंसा भाव में डूबता गया ..

इंदौर की वह जान और शान दोनों थे....अब जहाँ आज उन्हीं की जन्मभूमि और आरंभिक कर्मभूमि इंदौर में  प्रभाष जी का  अंतिम संस्कार किया जा रहा है, वह छोटी सी मुलाक़ात बरबस याद गई....और अपने ब्लॉग पर   एकाएक ये थोड़े से टूटे, बिखरे वाक्य भी.....
 उन्हें हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि ...





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