जगह जैसी जगह हेमंत शेष के भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित कविता संग्रह पर सुमन राजे ने एक लम्बी टिप्पणी लिखी थी। आश्चर्यजनक ढंग से वह टिप्पणी प्रशंसा से भरी थी। ताज्जुब इसलिए हुआ : सुमन राजे तारीफ़ में कम ही लिखती थीं , वह कविता और कविता आलोचना दोनों में गति रखतीं थीं। गत दिनों उनका एक संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया।
हम शोक संतप्त हैं : अपने दो और लेखकों के चले जाने पर भी ।
इधर सुदीप बनर्जी और लवलीन भी नहीं रहे। लवलीन का ध्यान आते ही उनका गुस्सा भी याद आ रहा है जो उनकी कवितायें कला प्रयोजन में न छाप पाने के बाद पत्र में उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ निकाला था। वह पत्र पता नही कहाँ गया, और कहाँ चलीं गयीं लवलीन भी, पर उनका जाना एक कर्मठ और भावुक औरत का जाना भी है। हमने उनकी एक कहानी देखन विच की हरज है प्रकाशित की थी । हमारी संवेदना ...........
सोमवार, 16 फ़रवरी 2009
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