मंगलवार, 5 मई 2009

दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का दुःख अपनी जगह बिल्कुल ठीक है


अपने मित्रों का लिखा पढ़ना ,खास तौर पर अपने प्रिय लेखकों को कहीं भी पढ़ना सुखद होता है। अभी दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का यात्रा वृत्त पढ़ा और जब उन्हें अपनी प्रतिक्रिया भेजी तो अमेरिका से मुझे मिली उनकी ये मेल :

"जब ये टिप्पणियां लिख रहा था तो मन में ऐसे ही कुछ विचार थे. मुझे हमेशा लगता है कि व्यावसायिकता बुरी ही नहीं होती, अच्छी भी होती है. यहां, पराये देश में घूमना सदा बेहतर अनुभव देता है, जबकि अपने देश में घूमते हुए हमेशा डर लगता रहता है। पर्यटन विभाग की उदासीनता और दृष्टि हीनता अपनी जगह है, और तमाम पर्यटन स्थलों पर पर्यटक को एक ही बार में लूट लेने की मानसिकता, दुर्व्यवहार, शिष्टता का अभाव, गन्दगी - ये सब चीज़ें बहुत आहत करती हैं। पिछले दिनों हम लोग बेटे बहू के साथ आमेर गए थे. वो जो पीछे से एक रास्ता है, कार वाला, उस रास्ते से. अगर किसी ने नरक न देखा हो तो एक बार उस रास्ते से गुज़र जाए. यह तमन्ना भी पूरी हो जाती है.. हमारे राज्य और शहर का सबसे नामचीन पर्यटन स्थल है आमेर, और वहां तक पहुंचने का रास्ता! हे राम! क्या किसी को भी यह नज़र नहीं आता? न पर्यटन विभाग को, न सरकार को, और न उन सब को जिनकी रोजी रोटी पर्यटकों की कृपा से चलती है ? जब यहां के पर्यटक स्थलों को देखते हैं तो यह सब याद आए बगैर नहीं रहता. आपने प्रतिक्रिया दी, बहुत अच्छा लगा. "

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