मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

ज़मीन और आसमान के बीच





हिन्दी कथाकार और चित्रकार प्रभु जोशी का ४० से भी ज़्यादा जलरंग चित्रों का एकल प्रदर्शन मार्च २००९ में जवाहर कला केन्द्र जयपुर में आयोजित था। यह प्रदर्शनी जलरंग जैसे अपेक्षाकृत कठिन माध्यम पर चित्रकार की पकड़ और संलग्नता का प्रमाण है।
बहुत बड़े आकार में नहीं , किंतु चित्रावकाश में छोटे होते हुए भी प्रभु जोशी ( 1950) अपने रंग- बर्ताव की मौलिक रचनाशीलता से भू खंडों , भवनों, दृश्यों, और प्रकृति की जानी पहचानी दुनिया का कुछ कुछ नई तरह सामना करते हैं । उनके यहाँ पहाड़ सिर्फ़ पहाड़ नहीं, एक कहानी है । नदी, नाले, पत्थर और घर जैसे कोई कविता , जिसमें दृश्यों के पीछे और दृश्य छिपे हुए हैं। चट्टानों, दीवारों, वनस्पतियों और भवन-संरचनाओं को प्रभु जोशी ने जिस कौशल और अंतरंगता से चित्रवस्तु बनाया है, वह समकालीन सैरों, खास तौर पर जलरंग- संयोजनों के इलाके में एक नई सी घटना है, जिस बात की तरफ हमारा ध्यान बराबर जाता है, वे हैं - textures .......उनके लगभग हर काम में textures की मौजूदगी , जो जलरंग माध्यम पर कलाकर्मी के असाधारण नियंत्रण को दर्शाती है। बर्फ, लकडी, पत्थर और दीवारों के texture यहाँ अपने पुराने समूचे अकेलेपन में भी बेहद दर्शनीय हैं । यों नीला, बेंगनी और भूरा प्रभु जोशी के शायद ज्यादा प्रिय रंग हों पर इनके अलावा भी धूसर रंगतों की मौजूदगी चित्रवकाश को एक नया मर्म बराबर देती है। यहाँ प्रकाश और छाया की बहुतेरी आवृत्तियाँ हैं।

यह विविध रंगों और रंगतों का एक ऐसा सुघड़ और खूबसूरत माया लोक है जिसमें कुछ खास रंगों जैसे कहीं कहीं- लाल की उपस्थिति बेहद उत्तेजक और ध्यान खींचने वाली है। वह चित्र की प्राकृतिक द्विआयामी सीमा को त्रि-आयामी दृश्य-संभावना बनाना चाहते हैं, इसलिए मुख्य फलक पर आयी चीज़ों के अलावा उनकी दिलचस्पी पृष्ठभूमि के अंकन में - ख़ास तौर पर-मूल दृश्य के पीछे दिखती आकृतियों में भी उतनी ही गहरी है।
यहाँ भू-दृश्य, एक ऊंचे पहाड़ पर खड़े हो कर प्रकृति की सौंदर्य सत्ता को देखने की कोशिश जैसा रोमांचक ही है। रंगों के सघन इस्तेमाल के साथ फ्रेंच gwash - सफ़ेद के उपयोग में प्रभु जोशी को एक अलग महारथ हासिल है। यहाँ सफ़ेद अपनी वाचालता में बहुत मुखर होते हुए भी संयत नज़र आता है, वह दूसरे रंगों के प्रभाव भी गहरे करता है। वह समूची सरंचना को नया अर्थ और आलोक देता सफ़ेद है।
उनके चित्रों के बारे में कथाकार समीक्षक अशोक आत्रेय की यह टिप्पणी भी पढ़े जाने लायक है : " प्रभु जोशी की ये रचनाशील सीरीज़ लैंडस्केप चित्रों और मिनिएचर्स शैली को उनकी आधुनिक प्रभावशीलता में प्रस्तुत करती है । इन चित्रों में सफ़ेद रंग-परतों और अनियमित रंग चिप्पियों की वजह से अलग पहचान करवाते हैं ।"
पता नहीं चलता प्रभु जोशी का यह चित्रांकन असल में उनके कहानीकार का ही विस्तार है, या चित्रांकन उनके कहानीकार के लिए प्रेरणा - पर एक कथाकार की तरह वह अगर बार-बार हमें देखे जा चुके स्थानों , शहरों, घरों, बरामदों, मंदिरों, दालानों और जलाशयों से जोड़ते हैं, तो यों इसमें कुछ भी आकस्मिक या अनदेखा नहीं है । प्रभु जोशी पत्थर और पानी की याद बेहद अंतरंगता से करते हैं। प्रकटतः वह दृश्यों की खूबसूरती के ही चितेरे हैं और अपने चित्रों में प्रकृति के विविध मूड्स को बेहतरीन रूपाकार देने के लिए उत्सुक।
प्रभु जोशी के चित्रों की एक और याद रखने लायक बात - उनके चित्रों में मनुष्य की अनुपस्थिति है। उनका चित्रलोक रंगों रेखाओं या आकृतियों से ठसाठस भरा पूरा होने के बावजूद एक सुंदर एकांत की अनुगूंजें समेटे हुए है। इन रचनाओं में मनुष्य कहीं भी मौजूद नहीं है।

जयपुर में प्रभु जोशी की ये पहली एकल प्रदर्शनी थी । इसके तुंरत बाद प्रभु ने मुंबई में भी अपना एक और शो किया है। हमें उनकी कूची से कुछ और लगातार बेहतरीन देखते जाने की जायज़ उम्मीद बनी हुई है।

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