यहाँ तीस नागा साधुओं ने जीवित भू-समाधि ली थी ठीक दो सौ अडसठ साल पहले लोग कहते हेँ इस मन्दिर के हर पूर्णिमा को सात बार परिक्रमा करके यहाँ से दो सौ इक्यावन गज दूर बने प्राचीन कुंड में नहाने से पुराने से पुराना चर्म-रोग ठीक हो जाया करता है.... यह काली मन्दिर राजाजी द्वारा पुत्र-प्राप्ति के उपलक्ष्य में बनवाया गया था जहाँ की बावडी के पास शनिचर जी महाराज की छः सौ साल पुरानी सवा हाथ बड़ी मूर्ति है जिसके आगे खेत जोतते वक्त हल की ठोकर से निकला था नीलम का दो फुट ऊंचा वही शिवलिंग जिसकी पूजा एक हज़ार साल से राजगढ़ के किले वाले मन्दिर में होती आई है.... कोतवाली वाले भैरों जी की उधर बड़ी मान्यता है क्यों की भानगढ़ के पुराने किले से लेकर इसी मन्दिर तक जहाँ आप अभी खड़े हैं, एक लम्बी भूमिगत सुरंग थी जो बाद में अंग्रेजों ने बंद करा दी और जहाँ बुधवार के दिन दाहिनी सूंड वाले गणेश जी को न्योतने आज भी दंडवत 'पर्कम्मा' करते हुए कोई दो सौ लोग तो आए ही हैं , ठीक इसी जगह के पास सदियों से मेघनाद का पुतला घास फूस और मिट्टी से बनाते थे यहाँ के कुम्हार जिसे ठाकुर साब का हाथी गिराया करता था विजय दशमी के दिन .....फाजूजी की धर्मशाला है ये, जहाँ घरेलू जानवरों को रोगमुक्त हो जाने पर लाया जाता है यहीं पीपल के पास प्रेत बाधा दूर होती है और काले कम्बल वाले फ़कीर बाबा की मजार पर हर शुक्रवार को औरतों का साप्ताहिक मेला भी भरता है चमत्कारी बरगद का ये बड़ा पेड़ देख रहें हैं न आप चरों तरफ़ मान्यता मांगने के लिए लपेटे गए उन हजारों धागों की तरफ़ निगाह डालिए जिस बरगद के किनारे बालाजी का ये मन्दिर है वहीं धर्मशाला के कुँए में राम जी का नाम लेकर फेंके गए पत्थर भी पानी पर तैरते हैं । शाम की आरती के बाद मौली बाँध कर इस पेड़ के ग्यारह चक्कर लगाइए पुराना पीलिया अपने आप ठीक हो जाएगा । वहां मन्दिर की इस शिला के नीचे लेटने से औरतों को माहवारी की पुरानी से पुरानी समस्या से छुटकारा मिलता है। वराह अवतार का चबूतरा और उसके पास वो देखिये रोजगारेश्वर महादेव जी का पुराना मन्दिर जहाँ हर अमावस्या की रात एक इच्छाधारी नाग आता है तालाब के किनारे वो जो भैरों जी की मूर्ति है न वो भी कम चमत्कारी नहीं। परुशुराम बाबा की समाधि के पास जिसके ऊपर बनी छतरी नमक का व्यापार करने वाले डीडवाना के बंजारों ने बनवाई थी। इसे नाहर भाता भी कहते हैं क्यों की शिवानन्द जी महाराज ने यहीं पर एक शेर को बकरी की तरह मन्दिर के उस खम्भे से बाँध दिया था अपने तंत्र के ज़ोर पर । शेर की वो मूर्ति अब गंगासहाय जी के गाँव वाले मन्दिर में अब भी देख सकते हैं आप। जहाँ चावंड माता की जोत पिछली सदी से आज भी जल रही है और रोज़ का कोई एक डेढ़ सेर देसी घी आरती और धूनी में लगता है कहते हैं न देने वाले भी श्रीनाथजी और पाने वाले भी श्रीनाथजी.... सब भगवान् की ही माया । रामदेव जी के चबूतरे की तो आपने बात ही नहीं की .....पहले बच्चे के बाल यहीं पर दिए जाते हैं और सांप काटने पर दूर दूर से मरीजों को यहीं लाया जाता है। चरण पहाडी के ऊपर पांडवों की गुफा है जिसमें चार महीने गुप्त प्रवास किया था उन्होंने....उस जगह एक शिव मन्दिर और है जहाँ की जलहरी का पानी कहाँ जाता है कोई जानता तक नहीं! बावडी के पीपल के आगे महावतों की तराई के पास मनसा माता की ये मूर्ति धरती से अपने आप निकली थी /
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें